साल 2003 में डायरेक्टर शशांक घोष की फिल्म ‘वैसा भी होता है पार्ट टू’ रिलीज हुई। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस में तो नहीं चली। लेकिन, इस फिल्म का एक गाना ‘अल्लाह के बंदे’ सुपरहिट हुआ। गाने को लिखा था विशाल ददलानी ने और संगीत था म्यूजिक डायरेक्टर विशाल-शेखर का। पर जब इस गाने को गाने वाले सिंगर की लोग आवाज सुनते तो कुछ देर के लिए ठिठक जाते। क्योंकि अंदाज सूफियाना था और आवाज सबसे जुदा।
लोग ये पूछे बिना रह नहीं पाते की ये आवाज किसकी है। ये सफलता उन्हें रातों रात नहीं मिली। जिंदगी में एक दौर में सिर्फ नाउम्मीदी थी, मुफलिसी भरे दिन थे। म्यूजिक के लिए घर छोड़ा। कई साल साधुओं के बीच गुजारे। गाने के एक मौके के लिए सालों संघर्ष किया। आज कहानी अपने गानों के जरिए लोगों के दिलों में बसने वाले सिंगर, लिरिसिस्ट और कंपोजर कैलाश खेर की, जो एक बार इतने हताश हो गए कि वो सुसाइड करना चाहते थे।
यूपी के मेरठ में मेहर सिंह खेर जो एक कश्मीरी पंडित थे। पत्नी के साथ गांव में रहते और मंदिर में पुजारी का काम करते। वो अक्सर प्रोग्राम में ट्रेडिशनल फोक गाया करते। इन्ही के घर 07 जुलाई 1973 को कैलाश खेर का जन्म हुई। तीन भाई बहनों में एक कैलाश खेर 4 साल की उम्र से ही अपने पिताजी के साथ गाना गाते। उनकी आवाज सुनकर हर कोई दंग रह जाता। 14 साल की उम्र में घर छोड़ दिया। वजह थी उन्हें म्यूजिक में ही अपना करियर बनाना था। गुरु की तलाश में वो एक दो साल कई जगह भटके। फिर ऋषिकेश आकर बस गए। यहां पर वो गंगा किनारे साधु संतों के साथ मिलकर भजन गाया करते। कुछ साल यहां बिताने के बाद दिल्ली चले गए।
कैलाश खेर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘संगीत के प्रति मेरा जुनून इस कदर था कि मुझे इसके चलते परिवार से अलग रहकर भटकना पड़ा। दिल्ली में म्यूजिक क्लास ज्वाइन कर ली। वहीं शाम की शिफ्ट में 150 रुपये प्रति सेशन के हिसाब से बच्चों को म्यूजिक सिखाने लगा। जिससे मेरा खर्च चलता। इसके बाद मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी, संगीत भारती और गंधर्व महाविद्यालय से संगीत सीखा।’
लेकिन अभी इस आवाज को लोगों तक पहुंचने में कड़ी मेहनत और संघर्ष की कहानी बाकी थी।
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए एक इंटरव्यू में कैलाश खेर ने बताया था कि ‘साल 1999 में मैं हैंडीक्राफ्ट बिजनेस से जुड़ा। अचानक बिजनेस में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ। इस सदमे में आकर मैंने एक बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी।’
लेकिन इनकी जिंदगी में म्यूजिक था जिसने इनको फिर से खड़ा किया। साल 2001 में अगली ट्रेन पकड़ी, जो उन्हें मुंबई ले गई। मुंबई का शुरुआती दौर सही नहीं रहा था। काफी वक्त तक वो स्टूडियोज के चक्कर लगाते रहे। हाथ लगी सिर्फ निराशा। फिर म्यूजिक डायरेक्टर राम संपत ने इनकी आवाज सुनी। कई सारे एड में जिंगल गाए।
साल 2003 में रिलीज हुई फिल्म ‘अंदाज’ में म्यूजिक डायरेक्टर नदीम श्रवण ने एक गाने 'रब्बा इश्क ना होवे' में अपनी आवाज देने का मौका दिया। इस गाने को सोनू निगम, अल्का याग्निक, सपना मुखर्जी और कैलाश खेर कुल चार लोगों ने मिलकर गाया था। और फिर जब इनकी आवाज से सजा साल 2003 में गाना अल्लाह के बंदे आया तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
एक इंटरव्यू में वो बताते हैं कि 'जिंदगी सबको मिलती है, जुनून किसी-किसी को महादेव देते हैं। सब जिंदगी जीते हैं, हम जुनून जीते हैं। जब भी मैं ख्वाबों में होता हूं, सबको ये लगता है मैं सोता हूं। दुनिया में जो भी अलग है, लगता वो सबको गलत है। जब पूछें कि गलत क्यों है तो उसका जवाब उनके पास है नहीं।'
कैलाश खेर का कहते हैं कि 'संगीत में जब तक कामयाब नहीं होते, तब तक इज्जत नहीं मिलती। हमारे क्षेत्र में कामयाब बहुत ही कम लोग होते हैं। सब पूछते थे कि क्या गाते हो, फिल्मी, भजन या क्लासिकल। जब गाने हिट होने शुरू हुए तो लोग कहने लगे कि ये सूफी गाते हैं। तब बाद में समझ आया कि हम जो गाते हैं वो आध्यात्मिक है।'
कैलाश खेर ने लगभग 700 से ज्यादा गानों में अपनी आवाज दी है। उनके गानों में भारतीय लोकगीत और सूफी संगीत की झलक है। वो कैलाशा नाम बैंड चलाते हैं। लगभग 10 साल में दुनिया भर में करीब 1000 से ज्यादा म्यूजिक कॉन्सर्ट में परफॉर्म कर चुके हैं।
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