दोस्ती और संगीत के सफर में जयकिशन और शंकर की दिलचस्प कहानी जिससे बदली उनकी ज़िन्दगी | जानिए पूरी कहानी केवल Manchh न्यूज़ पर विस्तार से |
दो युवा, एक हैदराबाद से थे दूसरे गुजरात से। दोनों करियर बनाने मुंबई आए। फिर संयोग से मिले। बातें हुईं तो महसूस हुआ दोनों का एक ही सपना है। म्यूजिक डायरेक्टर बनने का। दोनों को आइडिया आता है साथ काम करने का फिर दो दशक तक हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज किया। दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे थे।
एक थे शंकर सिंह रघुवंशी। आज कहानी दूसरे जोड़ीदार जयकिशन पांचाल की। जो अपने दोस्त शंकर से किया वादा भूल गए, दोस्त ने दोस्ती तोड़ी को गम बर्दाश्त नहीं कर पाए और सिर्फ 40 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए।
गुजरात के वंसाडा में दयाभाई पांचाल रहते। जो छोटा सा लकड़ी का काम करते। इन्ही के घर
4 नवंबर साल 1929 को जयकिशन पांचाल का जन्म हुआ। एक बहन रुकमड़ी जिसकी शादी हो गई थी और बड़े भाई बलवंत पांचाल मंडली में भजन गाते तो उनकी भी दिलचस्पी म्यूजिक की तरफ गई। जयकिशन हारमोनियम बजाते और साथ में क्लासिकल म्यूजिक भी सीखते।
वो एक्टर और सिंगर बनना चाहते थे। पर अचानक बड़े भाई का अचानक निधन हो गया। परिवार की जिम्मेदारी इन पर आई तो रोजी-रोटी और अपने सपनों में रंग भरने 19 साल की उम्र में मुंबई आ गए। बहनोई के रिश्तेदार की मदद से एक फैक्ट्री में काम करने लगे।
और खाली वक्त में हारमोनियम बजाने का रियाज करते। वो फिल्मों में एक मौके की तलाश में फिल्म प्रोड्यूसर, डायरेक्टर के ऑफिस के चक्कर भी लगाते और इसी दौरान उनकी मुलाकात शंकर से हुई।
दरअसल हैदराबाद के रहने वाले शंकर भी स्ट्रगल कर रहे थे, वो एक्टर पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर में तबला बजाते, फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी कर लेते। एक दिन वो काम की तलाश में फिल्म प्रोड्यूसर चंद्रवदन भट्ट के पास ले गए। जहां जयकिशन भी काम की तलाश में आए हुए थे। इंतजार के क्षणों में बातें हुईं। शंकर को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते हैं। संयोग से पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह खाली थी। जयकिशन पृथ्वी थियेटर से जुड़ गए। ये दोस्ती गहरी हुई।
दोनों म्यूजिक डायरेक्टर राम गांगुली के साथ बतौर असिस्टेंट काम करने लगे। वक्त गुजरा फिर शंकर-जयकिशन पर नजर गई, शो मैन राज कपूर की।
बतौर प्रोड्यूसर, डायरेक्टर राज कपूर की पहली फिल्म ‘आग’ का म्यूजिक पृथ्वी थियेटर के मोस्ट सीनियर राम गांगुली ने दिया था। आग के गाने हिट थे तो राज कपूर अगली फिल्म बरसात के लिए भी राम गांगुली को लेना चाहते थे। पर दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया।
राज कपूर शंकर - जयकिशन के काम के मुरीद थे उन्होंने उनसे एक धुन बनाने के लिए कहा।
धुन थी - ''जिया बेकरार है, छाई बहार है'। ये सुनकर राज कपूर ने फिल्म बरसात के लिए शंकर-जयकिशन को चुन निया।
इसके बाद म्यूजिक डायरेक्टर शंकर-जयकिशन ने साल 1949 की फिल्म बरसात के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। राज कपूर की करीब 18 फिल्मों के लिए शंकर-जयकिशन ने म्यूजिक दिया। शंकर-जयकिशन ने दो दशक के सफर में करीब 170 से ज्यादा फिल्मों के लिए म्यूजिक दिया और नौ बार फिल्म फेयर का अवार्ड जीता।
जयकिशन रोमांटिक स्वभाव के थे, उन्हें कपड़ों का बडा शौक था। करीबी दोस्त उन्हें अमेरिकन लेडी कहते।
डांस, टाइटल, थीम और सोलफुल सांग्स शंकर बनाते तो वहीं जयकिशन रोमांटिक, सीधे और सरल गीत बनाने में माहिर थे। एक वक्त ऐसा आया जब ये जोड़ी सबसे ज्यादा फीस लेती। लता जी इनको महानतम संगीतकार मानतीं। वहीं राज कपूर अपने जीवन और अपनी फिल्मों का सुर कहते।
इनका संगीत पूरी दुनिया में बजता। हर कलाकार इनके साथ काम करना चाहता था। पर अचानक सब कुछ मिट गया।
एक फिल्मी मैगजीन के मुताबिक, दरअसल दोनों ने एक दुसरे से वादा किया था, वो कभी भी सार्वजनिक रूप से किसी को नहीं बताएंगे कि कौन सी धुन किसने बनाई है। पर जयकिशन ने एक इंटरव्यू में बता दिया कि साल 1964 की फिल्म संगम का गीत "मेरा प्रेम पत्र पढकर, तुम नाराज न होना" की धुन उन्होंने बनाई है। शंकर इस बात से बेहद खफा हुए। हालात तब और बिगड़े जब अपनी मनमानी चलाने के लिए शंकर ने लता जी जगह अपनी खोज न्यू सिंगर शारदा को गाने के लिए मौका देना शुरू किया।
राजकपूर की वजह से दोनों साथ काम तो करते पर वक्त के साथ उनके बीच की दूरी बढ़ती चली गई। जयकिशन अपने अजीज दोस्त शंकर की जुदाई का गम सहन नहीं कर सके शराब को सहारा बनाया।
कहा जाता है सिंगर मोहम्मद रफी ने दोनों के बीच मतभेदों को दूर करने में मदद की लेकिन तब तक देर हो गई। शराब ने उनका लीवर खराब कर दिया। 12 सितंबर साल 1971, करीब 40 की उम्र में जयकिशन दुनिया छोड़ कर चले गए।
शंकर को राज कपूर ने काम नहीं दिया। कुछ बी ग्रेड फिल्मों के अलावा शंकर के पास कोई काम नहीं था। दौर बदल गया था। भीड़ में शंकर गुम हो गए। 16 साल अकेलापन झेला। इस दौरान सिर्फ अपने दोस्त जयकिशन की यादें थीं।
26 अप्रैल साल 1987 को भी उनका शव भी कमरे में पड़ा मिला। 64 साल की उम्र में वो भी दुनिया छोड़कर चले गए।
Comment
0 comment