इंडिया की मेजबानी में इस बार के वनडे वर्ल्ड कप का आयोजन हो रहा है। वर्ल्ड कप की हिस्ट्री में ऐसा पहली बार हो रहा जब इंडिया इस बड़े टूर्नामेंट को अकेले होस्ट कर रहा है। इससे पहले इंडिया 1987, 1996 और 2011 का वर्ल्ड कप दूसरे देश के साथ मिलकर होस्ट कर चुका है। लेकिन एक समय ऐसा था जब कोई एक देश वर्ल्ड कप आयोजन नहीं करा सकता था। वर्ल्ड कप सिर्फ इंग्लैंड में हुआ करते थे, लेकिन फिर साल 1983 में लॉर्ड्स में इंडिया-वेस्टइंडीज के बीच हुए फाइनल मैच में एक ऐसा वाक्या हुआ, जिसके बाद भारत ने वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर कराने की ठान ली। हालांकि ये इतना आसान नहीं था, कहते हैं अगर रिलायंस ग्रुप के फाउंडर धीरूभाई अंबानी उस समय आगे न आते तो इंडिया को 1987 के वर्ल्ड कप के मेजबानी न मिल पाती। आइए जानते हैं इंडिया की पहली बार कैसी मिली थी वर्ल्ड कप की मेज़बानी।
साल 1983...प्रूडेंशियल विश्व कप...इंग्लैंड की सरज़मी पर भारत वेस्टइंडीज के साथ फाइनल में पहुंच गया था। खुद की टीम के फाइनल में न पहुंचने से इंग्लैंड गुस्से में था। 83 का फाइनल देखने के लिए इंग्लैंड बोर्ड ने भारत से कई लोगों को लॉर्ड्स आने के लिए इन्वीटेशन भेजा। इन्हीं कई लोगों में एक थे नरेंद्र कुमार साल्वे, उस वक्त के भारतीय बोर्ड BCCI के प्रेसिडेंट, ICC के मेंबर और इंडियन गवरमेंट में यूनियन मिनिस्टर।
कहते हैं साल्वे से BCCI के बाकी सदस्यों और कुछ अन्य लोगों ने मैच के टिकट मांगे। जिसपर साल्वे ने भी इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड से कुछ एक्स्ट्रा टिकट की मांग कर दी। लेकिन उन्होंने साल्वे को एक्स्ट्रा टिकट देने से साफ मना कर दिया, साल्वे को बहुत बुरा लगा। उन्होंने वहां बैठकर मैच तो पूरा देखा, पर मन में इंग्लैंड को लेकर गुस्सा भी था।
खैर, भारत विश्वकप जीत गया, कपिल देव ने क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स मैदान पर ऐतिहासिक ट्रॉफी उठाई। जीत के खुशी में साल्वे ने पार्टी रखी, जिसमें वर्ल्ड कप विजेता खिलाड़ियों के अलावा, BCCI और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अधिकारी शामिल हुए। कहा जाता है इसी मीटिंग में साल्वे और पाक बोर्ड PCB के प्रेसिडेंट एयरमार्शल नूर खान के बीच वर्ल्ड कप को अपने-अपने देश में कराने की प्लानिंग बनी। हालांकि ये इतना आसान नहीं क्योंकि उस टाइम सिर्फ ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड ही वो दो देश थे जिनके पास ICC में वीटो पावर मौजूद थी।
साल्वे ने एक स्ट्रेटजी के तहत भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्डों की एक ज्वाइंट कमेटी बनाई। जिसके बाद साल्वे ने BCCI के कोषाध्यक्ष जगमोहन डालमिया के साथ मिलकर ICC को अपने पक्ष में करना का एक शानदार प्लान बनाया। दोनों ने मिलकर पता लगाया कि ICC के कुल सदस्य देश 28 हैं, जिसमें सिर्फ 7 देश ऐसे हैं जो टेस्ट क्रिकेट खेलते हैं। जबकि 21 देशों को ICC से दर्जा ही नहीं मिला हुआ है। बस यहीं से साल्वे और BCCI ने टेस्ट न खेलने वाले 21 देशों को अपने पक्ष में कर लिया। जिसके बाद पाकिस्तान और भारत ने ICC के सामने विश्वकप आयोजन के प्रस्ताव को पेश कर दिया। आयोजन को लेकर वोटिंग हुई, जिसे भारत ने 16-12 से जीत लिया।
भारत और पाकिस्तान ज्वाइंट होस्ट थे। हालांकि एक दिक्कत थी विश्वकप कराने में 30 करोड़ रूपए का खर्चा था। जिसमें पाकिस्तान ने कहा 10 करोड़ हम दे देंगे बाकी के 20 करोड़ भारत को देने थे। आज भले ही BCCI वर्ल्ड क्रिकेट में सबसे अमीर बोर्ड है, लेकिन उस वक्त BCCI के पास इतने पैसे नहीं थे। BCCI के खाते में 16 करोड़ रूपए थे, 4 करोड़ रूपए कम पड़ रहे थे। इसके लिए BCCI ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों से बात की। इसमें हिंदुजा ग्रुप, कोको कोला जैसी कंपनियां शामिल थीं। बोली लगी 37 लाख रूपए के आसपास, लेकिन जरूरत तो 4 करोड़ रूपए की थी। फिर एंट्री होती है धीरूभाई अंबानी की, उनकी टेक्सटाइल कंपनी रिलायंस BCCI की मदद करने को तैयार हो गई। हालांकि उन्होंने एक शर्त रखी कि अगर भारत में विश्वकप होता है रिलायंस उसे स्पांसर करेगा। BCCI ये शर्त मान गया और रिलायंस ने लगभग 2.2 मिलियन पाउंड दे दिए। साल 1987 मे खेला गया ये विश्वकप इतना सफल हुआ कि उसके बाद से बाकी देशों में इसके होनें की संभावना बढ़ गई।
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