पैट्रीआर्कल सोसायटी जिसे पितृसत्ता वाला समाज कहते हैं और चाहे आप मर्द हों या औरत पितृसत्ता क्या होती है, ये बताने की शायद जरुरत नहीं है। खैर आज यहां UNDP की एक रिपोर्ट पर बात करने वाले हैं, जिसमें समाज में जो नियम कायदे कानून एक महिला पर थोपने के लिए बनाए गए हैं, उसे सही मानते हैं और तो और एक अच्छा-खासा लोगों का समूह महिला पर हिंसा भी सही मानता हैं, उसकी पैरवी करता है।
UNDP यानी कि The United Nations Development Programme ने जेंडर सोशल नॉर्म्स इंडेक्स (GSNI) 2023 की एक रिपोर्ट पेश की। जिसे हयूमन डेवलेपमेंट परस्पेक्टिव से पेश किया गया। इस रिपोर्ट में चौंका देने वाली बातें सामने आईं हैं जो बताती हैं कि समाज को जेंडर इक्वॉलिटी हासिल करने में अभी काफी लंबा रास्ता चलना बाकी है। ये रिपोर्ट इसलिए भी खास है क्योंकि ये 2023 में आई है लेकिन इससे जो बातें निकलकर आईं हैं वो ये बताती हैं कि महिलाओं को लेकर समाज का रवैया दशकों पहले जैसा था, आज भी उसमें कोई खास बदलाव नहीं हैं। जेंडर इक्वॉलिटी, जेंडर डिस्पैरिटी, जेंडर बायसनेस या महिला-पुरूष के बीच समान हक की चाह में वो सभी चीजें जिसपर दशकों से चर्चाएं हो रही हैं, जो दशकों से कभी न खत्म होने वाली डिबेट का हिस्सा है।
आज 21वीं सदी में जब हम ये सोचते हैं कि जेंडर इक्वालिटी ने एक लंबा रास्ता तय कर लिया है, महिलाएं जो चाहती है, जिसकी वो हकदार हैं वो उन्हें मिल रहा है, तो बता दें इस रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा सोचने वाले सभी लोग गलत हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक सोसायटी में जो जेंडर बायसनेस है, उसमें आज भी लोग पक्षपात करते हैं। लोगों में जेंडर बायसनेस में कोई खास बदलाव नहीं आया है।
इस रिपोर्ट के सर्वे में शामिल लोगों ने किन पक्षपातों और गलत बातों को सही ठहराया वो भी जान लेते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि सर्वे में शामिल 25 परसेंट लोग महिलाओं को पतियों से पीटे जाने को जायज ठहराते हैं और ग्लोबली 10 में से 9 पुरूष यानी कि 90 परसेंट मर्द समाज में हो रही महिलाओं के खिलाफ बायसनेस को सही करार देते हैं।
तो वहीं ग्लोबली अभी भी 50 परसेंट लोगों का मानना है कि महिलाओं के कमपैरिजन में पुरूष बेहतर पॉलिटिशियन हैं। तो वहीं 40 परसेंट लोगों का मानना है कि महिलाओं के कमपैरिजन में पुरूष ज्यादा बेहतर बिजनेस एग्यूटिव हैं। यूएनडीपी की ये रिपोर्ट 80 देशों जहां पर विश्व की 85 परसेंट आबादी रहती है, उस हिसाब से तैयार की गई है। हालांकि रिपोर्ट का एक पक्ष ये भी बताता है कि भले ही रिपोर्ट इन फैक्ट्स पर फोकस करती है कि महिलाओं के खिलाफ दिखाई गए बायसनेस वाले आकंड़ो के बाद भी बदलाव मुमकिन है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पॉलिटिक्स में महिलाओं की पॉलिटिक्स में भागीदारी से, इक्वॉलिटी को बढ़ावा देने और कानून और नीतिगत उपायों जैसे कि हयूमन डेवलेपमेंट की तरफ ध्यान देने से जेंडर इक्वॉलिटी की डायरेक्शन में बदलाव संभव है। पैट्रीआर्कल एटिट्यूट, जेंडर स्टीरियोटाइप, सोसायटी के बायस मापदंडों का मुकाबला करने से जेंडर इनक्वॉलिटी को समय के साथ बदला जा सकता है।
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