जब महिलाएं हैं आधी आबादी, तो कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी में बराबर क्यों नहीं?

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ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज अपने फूड प्रोडक्ट्स के लिए जानी जाती है, लेकिन अब कंपनी का एक फैसला अन्य दूसरी कंपनियों के लिए एग्जांपल बन सकता है और वो है साल 2024 तक कपंनी अपने कर्मचारियों में 50 फीसदी महिलाओं को जगह देंगी, वैसे इसे महिला आरक्षण मत समझिएगा, कंपनी का इसके पीछे कारण प्रोडक्टिवी से जुड़ा है। तो वहीं दिन भर जिस फेसबुक और इंस्टा पर हम अपना वक्त देते हैं उसकी पैरेंट कंपनी मेटा के बारे में रिपोर्ट कहती है कि वो अपनी फीमेल एम्लॉइज को पुरुषों की तुलना में कम सैलेरी देती है। कॉर्पोरेट सेक्टर्स में महिलाओं की स्थिती पर सरकार का रुख भी सामने आया है।

सबसे पहले तो कॉपोरेट सेक्टर्स के लिए मंत्रालयों में क्या बातचीत चल रही है, वो समझ लेते हैं। तो ऐसी रिपोर्ट सामने आई है जिसमें बताया गया है कि लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए सरकार कॉर्पोरेट सेक्टर्स में ठोस कदम उठाने जा रही है। बताया जा रहा है जिसमें महिला कर्मचारियों से जुड़ी जानकारियां कंपनी को देनी होगी। अब ये महिलाओं की कितनी परसेंट भागीदारी है, एक ही पोस्ट पर होते हुए भी एक महिला को क्या सैलरी मिल रही है और पुरुष को क्या, ये जानकारियां हो सकती हैं। हालांकि अभी सरकार का ये प्रस्ताव शुरुआती दौर में ही

कंपनी एक्ट 2013 के तहत हर लिस्टेड कंपनी में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में एक महिला डायरेक्टर का होना जरुरी है, ये अब तक का सबसे बोल्ड कदम कहा जा सकता है। रिपोर्ट गवाह हैं कि फीमेल डायरेक्टर्स के आंकड़ों में जगह-जगह क्षेत्रों में कहीं कम-कहीं ज्यादा ग्रोथ देखने को मिली है।

वैसे ये प्रस्ताव भी ऐसे वक्त आगे बढ़ता दिख रहा है, जब देश में अलग अलग सेक्टर्स में कम महिला भागीदारी को लेकर चिंता जताई जा रही है। रिपोर्ट्स इस ओर इशारा करती हैं कि भारत में महिलाओं की भागीदारी बीते तीन दशकों में कम हुई है। जैसे इसी मुद्दे पर वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि भारत की इकोनॉमी 1990 के बाद से 10 गुना से भी ज्यादा है, लेकिन इसमें महिलाओं की भागीदारी कम हुई है। 1990 में जहां महिलाओं की भागीदारी 30 परसेंट थी, तो साल 2021 में इसमें 19 परसेंट की कमीं हो गई है।

इसके पीछे कई पर्सनल या प्रोफेशनल कारण हो सकते हैं। जहां निजी कारण हर महिला के लिए अपने –अपने हो सकते हैं तो प्रोफेशनल कारणों में सैलरी और बोनस में भेदभाव एक कॉमन प्रॉब्लम हो सकती है। 'बिजनेस इनसाइडर' के मुताबिक ब्रिटेन और आयरलैंड में वेतन असमानता पर कंपनी की रिपोर्ट से कई तथ्य सामने आए है, साल 2022 में आयरलैंड में मेटा में काम करने वाली महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 15.7% कम पे किया गया। साथ ही बोनस के मामले में ये डिफरेंस और भी ज्यादा है। महिलाओं को दिया गया औसत बोनस पुरुषों की तुलना में 43.3% कम था।

इसलिए अगर कंपनियों को अपनी महिला कर्मचारियों का डाटा पेश करना होगा तो इससे आकंडों की दिशा पॉजिटिव होगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है और जानकारों कहते हैं कि इससे न केवल महिलाओं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। वैसे कंपनियों में महिला कर्मचारियों के अनुपात पर भले कोई कानून भले न हो, लेकिन समान पारिश्रमिक कानून, 1976 में कहा गया है कि कोई भी नियोक्ता अपने संस्थान में वेतन वगैरह देने में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) का भी मानना है कि सटीक डाटा आने से लैंगिक असमानता दूर करने में मदद मिल सकती है। हालांकि ये भी सच है कि महिलाओं की भागीदारी हर सेक्टर में एक जैसी हो, ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती।

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